गदरपुर मंडी पर संकट ,तीन फसलें अब सपना, आढ़त घाटे का सौदा

गदरपुर मंडी पर संकट तीन फसलें अब सपना, आढ़त घाटे का सौदा गदरपुर (ऊधम सिंह नगर)। कभी खेती और आढ़त से गुलजार रहने वाला गदरपुर क्षेत्र अब आर्थिक संकट की चपेट में है। जहां एक दशक पहले तक साल में तीन फसलें होती थीं, वही अब जलवायु परिवर्तन के चलते जलस्तर निरन्तर नीचे गिर रहा था सरकार ने इस बार साठा धान की खेती पर सशर्त अनुमति दी थी ,और अगले साल से पूरी तरह प्रतिबंध की तैयारी है। इससे किसानों को भी चिंता है, लेकिन आढ़तियों की हालत भी बदतर है। खरीद-बिक्री में मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाले आढ़ती अब नीतियों और बढ़ते खर्चों के बीच पिस रहे हैं। पंजाब-हरियाणा से तुलना में नुकसान में उत्तराखंड गदरपुर के एक आढ़ती दीदार सिंह बताते हैं, “पंजाब-हरियाणा में आढ़त का कमीशन 2.5% है जबकि उत्तराखंड में मात्र 1.5%। वहां के व्यापारी सहजता से लागत निकाल लेते हैं जबकि हम न्यूनतम मार्जिन पर चल रहे हैं।” इस अंतर से न केवल राज्य में प्रतिस्पर्धा घट रही है, बल्कि स्थानीय मंडियों से व्यापारी पलायन कर रहे हैं। नई मंडी में किराया बना सिरदर्द गदरपुर में हाल ही में निर्मित नवीन मंडी परिसर में दुकानों का किराया आढ़तियों के लिए एक और संकट बनकर उभरा है। जहां सामान्य मंडियों में किराया ₹4,000 से ₹5,000 तक है, वहीं गदरपुर में यह ₹12,000 प्रतिमाह निर्धारित किया गया है। एक आढ़ती राजेश अग्रवाल कहते हैं, “उत्पादन घट रहा है, किसान कम आ रहे हैं, आढ़त घट रही है — और ऊपर से इतना भारी किराया! अब तो व्यापार छोड़ने की नौबत आ गई है।” अब व्यापार घाटे में, नई आजीविका की तलाश इस समय स्थिति यह है कि मंडी शुल्क, कमीशन दर, स्टाफ, बिजली बिल, लाइसेंस शुल्क और GST मिलाकर कई आढ़तियों का व्यापार खर्च तक नहीं निकाल पा रहा। कुछ आढ़ती तो दुकानें खाली करके अन्य रोजगार जैसे रिटेल व्यापार, ट्रांसपोर्ट और किराना स्टोर की ओर रुख कर चुके हैं। आढ़तियों की माँग राज्य में आढ़त दर पंजाब-हरियाणा की तर्ज पर बढ़ाई जाए नवीन मंडी परिसर का किराया यथोचित किया जाए मंडी शुल्क और टैक्स व्यवस्था सरल एवं पारदर्शी हो साठा धान के प्रतिबंध पर किसानों से संवाद कर निर्णय लिया जाए खेती में पानी की कमी, व्यापार में घाटा और मंडी में बढ़ता किराया — ये सभी मिलकर गदरपुर की मंडी व्यवस्था को धीरे-धीरे समाप्ति की ओर धकेल रहे हैं। यदि राज्य सरकार ने समय रहते हस्तक्षेप नहीं किया तो यह पारंपरिक कृषि व्यापार प्रणाली का पतन साबित हो सकता है।

गदरपुर मंडी पर संकट ,तीन फसलें अब सपना, आढ़त घाटे का सौदा