शिक्षक दिवस पर आचार्य प्रशांत ने किया ज्ञान के सच्चे स्वरूप का आह्वान
रुद्रपुर : शिक्षक दिवस पर, आध्यात्मिक गुरु और विचारक आचार्य प्रशांत ने शिक्षा और गुरु के सच्चे स्वरूप पर गहन विचार व्यक्त किए। एक विशेष संबोधन में, उन्होंने पारंपरिक शिक्षा प्रणाली और आधुनिक समाज

शिक्षा का असली उद्देश्य जीवन को गहराई से समझना है
रुद्रपुर : शिक्षक दिवस पर, आध्यात्मिक गुरु और विचारक आचार्य प्रशांत ने शिक्षा और गुरु के सच्चे स्वरूप पर गहन विचार व्यक्त किए। एक विशेष संबोधन में, उन्होंने पारंपरिक शिक्षा प्रणाली और आधुनिक समाज के बीच के विरोधाभासों को उजागर करते हुए, छात्रों और शिक्षकों से ज्ञान के सही मार्ग पर चलने का आह्वान किया।
शिक्षण का असली उद्देश्य: नौकरी नहीं, जीवन की समझ
आचार्य प्रशांत ने अपने संबोधन की शुरुआत करते हुए कहा कि आज की शिक्षा का एकमात्र लक्ष्य अच्छी नौकरी और अधिक धन कमाना बन गया है, जो कि शिक्षा के मूल उद्देश्य से भटकना है। उन्होंने कहा, "शिक्षा का असली उद्देश्य हमें इस जीवन को गहराई से समझना सिखाना है। यह हमें सिखाती है कि हम कौन हैं, हम क्यों हैं और हमें अपने जीवन से क्या करना चाहिए।" उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अगर शिक्षा केवल आर्थिक लाभ के लिए है, तो वह हमें केवल एक कुशल मशीन बना सकती है, लेकिन एक सच्चा, संवेदनशील और जागरूक इंसान नहीं।
आंतरिक स्वतंत्रता ही सच्ची शिक्षा का फल
अपने संबोधन में, आचार्य प्रशांत ने छात्रों को बाहरी दबावों और सामाजिक अपेक्षाओं से मुक्त होने की सलाह दी। उन्होंने कहा, "समाज हमें बताता है कि हमें क्या बनना चाहिए, क्या करना चाहिए और कैसे रहना चाहिए। लेकिन सच्ची शिक्षा हमें इन सभी बंधनों से मुक्त करती है।" उन्होंने छात्रों से अपने भीतर की आवाज को सुनने और अपनी वास्तविक क्षमता को पहचानने का आग्रह किया। उनके अनुसार, आंतरिक स्वतंत्रता ही सच्ची शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण फल है, जो व्यक्ति को अपने निर्णय स्वयं लेने और जीवन में सही चुनाव करने की शक्ति देती है।
गुरु और शिक्षक का अंतर: अज्ञान से मुक्ति का मार्ग
आचार्य प्रशांत ने गुरु और शिक्षक के बीच के सूक्ष्म लेकिन महत्वपूर्ण अंतर को भी स्पष्ट किया। उन्होंने कहा, "शिक्षक हमें जानकारी देते हैं और बाहरी दुनिया को समझने में मदद करते हैं, जबकि गुरु हमें अपने भीतर के अज्ञान से मुक्त करते हैं।" उन्होंने आगे कहा कि सच्चा गुरु वह है जो हमें प्रश्न करना सिखाता है, जो हमें स्थापित मान्यताओं पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित करता है, ताकि हम स्वयं सत्य को खोज सकें। उन्होंने कहा कि गुरु का कार्य हमें केवल सूचना देना नहीं, बल्कि हमें सत्य के दर्शन कराना है।
आचार्य प्रशांत ने छात्रों को उनकी जिम्मेदारी याद दिलाई। उन्होंने कहा कि केवल कक्षा में दी गई जानकारी को याद कर लेना पर्याप्त नहीं है। "छात्रों की असली जिम्मेदारी है कि वे जीवन में सत्य को खोजें और उस पर चलने का साहस दिखाएं।" उन्होंने कहा कि आज के समय में जब चारों ओर भटकाव और भ्रम है, तो यह अत्यंत आवश्यक है कि छात्र अपनी जागरूकता को बढ़ाएं और जीवन को एक प्रयोग की तरह देखें, जहाँ हर अनुभव से कुछ सीखा जा सके।
इस संबोधन ने शिक्षा के प्रति एक नई दृष्टि प्रदान की, जिसमें ज्ञान को केवल अकादमिक उपलब्धि के बजाय, जीवन जीने की कला के रूप में देखा गया। आचार्य प्रशांत का यह संबोधन उन सभी के लिए एक प्रेरणा था जो ज्ञान के सच्चे अर्थ को समझना चाहते हैं।