ग्रामीणों की राजनीति में फँसा आयुर्वेद चिकित्सालय का उच्चीकरण

गदरपुर/नैनीताल। जनाब, अगर आपको लगता है कि अस्पताल का काम बीमारों का इलाज करना है तो आप गलत हैं। हमारे यहाँ अस्पताल पहले राजनीति और फिर मरीजों की सेवा के लिए होते हैं।

ग्रामीणों की राजनीति में फँसा आयुर्वेद चिकित्सालय का उच्चीकरण

गदरपुर/नैनीताल। जनाब, अगर आपको लगता है कि अस्पताल का काम बीमारों का इलाज करना है तो आप गलत हैं। हमारे यहाँ अस्पताल पहले राजनीति और फिर मरीजों की सेवा के लिए होते हैं। इसका ताज़ा उदाहरण नैनीताल जिले के रानीकोटा का राजकीय आयुर्वेद चिकित्सालय है,जिसका उच्चीकरण फिलहाल ‘ग्राम प्रधान बनाम ग्रामीणों’ की रस्साकशी में उलझा हुआ है।

आयुष विभाग ने बड़े मनोयोग से योजना बनाई थी कि पुराने जर्जर भवन से अस्पताल को उठाकर नए भवन में ले जाया जाए, ताकि ग्रामीणों को बेहतर सुविधाएँ मिल सकें। लेकिन भला ऐसा आसान कहाँ? ग्राम प्रधान जी ने तुरन्त ऐतराज जता दिया। उनका कहना है कि अस्पताल कहीं और शिफ्ट हुआ तो बेचारों को इलाज के लिए दूर जाना पड़ेगा। सुनने में बड़ा संवेदनशील लगता है, पर कुछ ग्रामीणों का कहना है कि प्रधान जी असल में राजनीति की पटरी बिछा रहे हैं।

उधर,समर्थक ग्रामीणों का तर्क भी दिलचस्प है—रानीकोटा कोटाबाग से सीधे सड़क मार्ग से जुड़ा है और यहाँ से 25 गाँवों को फायदा मिलेगा। यानी एक अस्पताल, पूरे इलाके की सेहत बना देगा। लेकिन प्रधान जी शायद मान बैठे हैं कि अगर अस्पताल गाँव में रहा तो लोग स्वस्थ रहेंग और स्वस्थ लोग राजनीति में दखल देने लगते हैं।

इस बीच एक और मसाला है—डोला में अब तक यह अस्पताल किराए के भवन में चल रहा था और भवन स्वामी किराया छोड़ने को तैयार नहीं। यानी इलाज से ज्यादा ज़रूरी है किराया वसूलना। अब प्रशासन सोच रहा है कि अस्पताल चलाएँ या रियल एस्टेट का धंधा।

प्रभारी चिकित्साधिकारी डॉ. नीतू कार्की भी परेशान हैं। उन्हें डर है कि कहीं अस्पताल के इस शिफ्टिंग ड्रामे में उनकी सुरक्षा खतरे में न पड़ जाए। डॉक्टर साहिबा ने उपजिलाधिकारी को पत्र लिखकर सुरक्षा माँग ली है  उन्हें अपनी सुरक्षा की चिंता सताने लगीं है क्योंकि ग्रामीणों की राजनीति के चक्कर में उन्हें अपना भय सताने लगा है।

कुल मिलाकर मरीज फिलहाल यह सोचकर तसल्ली कर सकते हैं कि चाहे अस्पताल हो या राजनीति,दोनों का इलाज एक जैसा है—धीमा,विवादित और अधर में लटका हुआ।