आचार्य प्रशांत

किताबों से दोस्ती: एक स्वस्थ, संवेदनशील और समृद्ध समाज की नींव किताबें केवल पन्नों में छपे हुए शब्द नहीं होतीं, वे एक जीवंत विचार-समाज का निर्माण करती हैं। एक सच्चा पाठक जब किसी अच्छी पुस्तक को पढ़ता है, तो वह केवल जानकारी नहीं प्राप्त करता, बल्कि अपने भीतर एक नई दृष्टि, समझ और विवेक का निर्माण करता है। किताबों से दोस्ती न केवल व्यक्तिगत विकास का मार्ग है, बल्कि यह एक सशक्त, नैतिक और समृद्ध समाज की नींव भी रखती है। आज के युग में, जहाँ हर तरफ तेज़ रफ़्तार, तनाव और सूचना का शोर है, किताबें हमारे लिए मानसिक विश्राम, दिशा और स्थिरता का माध्यम बन सकती हैं। वे जीवन की गहराई को छूने और स्वयं को समझने में मदद करती हैं। अध्ययन की संस्कृति केवल परीक्षा पास करने या डिग्री पाने तक सीमित नहीं होनी चाहिए। सच्चा अध्ययन वह है जो सोचने की स्वतंत्रता दे, संवेदना जगाए और विवेकपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करे। अच्छे लेखकों की किताबें व्यक्ति को एक नया मार्ग दिखाती हैं। वे अनुभव, चिंतन और दृष्टिकोण के ऐसे भंडार होते हैं जो पाठक को जीवन के विभिन्न आयामों से परिचित कराते हैं। एक अच्छा लेखक केवल जानकारी नहीं देता, वह पाठक के साथ संवाद करता है, उसे सोचने के लिए प्रेरित करता है और भीतर से कुछ बदल देता है। ऐसे लेखक समाज को दिशा देते हैं, और यही कारण है कि उनका साहित्य कालजयी बनता है। विशेष रूप से आध्यात्मिक पुस्तकें आत्मिक उन्नति की दिशा में अद्भुत योगदान देती हैं। भगवद गीता, उपनिषद, बुद्ध के उपदेश, कबीर की वाणी और रैदास के विचार आज भी प्रासंगिक हैं क्योंकि वे जीवन के मूल प्रश्नों का उत्तर देते हैं। ये ग्रंथ व्यक्ति को बाहरी संसार की चकाचौंध से भीतर की यात्रा की ओर ले जाते हैं। आज के समय में जहाँ चारों तरफ भटकाव है, वहाँ ऐसे साहित्य की अत्यधिक आवश्यकता है। इसी परंपरा को आधुनिक युग में आगे बढ़ाया है आचार्य प्रशांत ने। उनके विचार, लेख और पुस्तकें आज के पाठक को व्यावहारिक और स्पष्ट भाषा में गहराई से जोड़ती हैं। ‘प्रेम पर प्रश्न’, ‘जो मरने से डरे हैं’, ‘श्रीमद्भगवद्गीता – एक प्रयोग’, ‘राम और कृष्ण’, ‘वेदांत के आरंभिक सूत्र’ जैसी पुस्तकों में न केवल दर्शन की गूढ़ता है, बल्कि आज के व्यक्ति की उलझनों को समझने और सुलझाने की शक्ति भी है। आचार्य प्रशांत का साहित्य जटिल अध्यात्म को न तो रूढ़िवादिता में बाँधता है और न ही केवल भावुकता में, बल्कि वह तर्क, अनुभव और सजगता के साथ पाठक को सच के करीब ले जाता है। किताबों से न केवल बौद्धिक या आत्मिक लाभ होता है, बल्कि वे व्यावसायिक और आर्थिक उन्नति की दिशा भी खोलती हैं। विज्ञान, प्रौद्योगिकी, प्रबंधन, उद्यमिता और सामाजिक विज्ञानों से संबंधित पुस्तकें युवा वर्ग को रोजगार, नवाचार और आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रेरित करती हैं। एक पढ़ता हुआ समाज हमेशा विकासशील रहता है और आत्मबल से भरपूर होता है। लेकिन इस चर्चा में एक जरूरी बात का उल्लेख करना भी आवश्यक है—हर किताब लाभकारी नहीं होती। आज बाजार में अनेक ऐसे साहित्य भी उपलब्ध हैं जो केवल मनोरंजन के नाम पर विकृति फैला रहे हैं। घटिया किस्म का साहित्य—जिसमें अश्लीलता, हिंसा, अंधविश्वास, विकृत विचार या सामाजिक विद्वेष हो—पाठकों, विशेषकर युवाओं के मन पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। ऐसा साहित्य धीरे-धीरे संवेदनशीलता को खत्म करता है, सोचने की शक्ति को कुंद करता है और समाज में असंतुलन फैलाता है। इसलिए यह जरूरी है कि हम पढ़ने के साथ-साथ यह भी देखें कि हम क्या पढ़ रहे हैं। आज का समय तकनीकी और डिजिटल युग का है। मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया ने ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को कम किया है। युवाओं का ध्यान त्वरित मनोरंजन की ओर अधिक है, जिससे गहराई से पढ़ने और समझने की परंपरा कमजोर हो रही है। ऐसे समय में परिवार, विद्यालय और सामाजिक संस्थानों की जिम्मेदारी बनती है कि वे बच्चों और युवाओं में अच्छी किताबों के प्रति रुचि विकसित करें। पुस्तक मेलों, पुस्तकालयों और साहित्यिक आयोजनों को बढ़ावा देना आज की आवश्यकता है। किताबों से दोस्ती केवल एक आदत नहीं, बल्कि एक संस्कार है जो व्यक्ति और समाज दोनों को निखारता है। अच्छे लेखकों और आध्यात्मिक मार्गदर्शकों की पुस्तकों से जहाँ दिशा, विवेक और आत्मबल प्राप्त होता है, वहीं घटिया साहित्य से बचकर हम मानसिक और सामाजिक रूप से स्वस्थ रह सकते हैं। अतः एक अच्छे समाज का निर्माण तभी संभव है जब हम किताबों को अपना मित्र बनाएँ—सोच-समझकर पढ़ें, और दूसरों को भी प्रेरित करें।