जिंदगी

अच्छी थी, पगडंडी अपनी।* *सड़कों पर तो, जाम बहुत है।।* *फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो।* *सबके पास, काम बहुत है।।* *नहीं जरूरत, बूढ़ों की अब।* *हर बच्चा, बुद्धिमान बहुत है।।* *उजड़ गए, सब बाग बगीचे।* *दो गमलों में, शान बहुत है।।* *मट्ठा, दही, नहीं खाते हैं।* *कहते हैं, ज़ुकाम बहुत है।।* *पीते हैं, जब चाय, तब कहीं।* *कहते हैं, आराम बहुत है।।* *बंद हो गई, चिट्ठी, पत्री।* *व्हाट्सएप पर, पैगाम बहुत है।।* *आदी हैं, ए.सी. के इतने।* *कहते बाहर, घाम बहुत है।।* *झुके-झुके, स्कूली बच्चे।* *बस्तों में, सामान बहुत है।।* *नही बचे, कोई सम्बन्धी।* *अकड़,ऐंठ,अहसान बहुत है।!* *सुविधाओं का, ढेर लगा है।* *पर इंसान, परेशान बहुत है।।*♥️