एक सड़क, तीन शिलान्यास — राजनीति का सड़क नाटक
विकास की सड़कें अक्सर मंज़िल तक पहुँचने से पहले राजनीति के दलदल में फँस जाती हैं। गदरपुर–दिनेशपुर–मटकोटा मार्ग इसका ताज़ा उदाहरण है। यह सड़क जनता के लिए जीवनरेखा है

प्रदीप फुटेला
विकास की सड़कें अक्सर मंज़िल तक पहुँचने से पहले राजनीति के दलदल में फँस जाती हैं। गदरपुर–दिनेशपुर–मटकोटा मार्ग इसका ताज़ा उदाहरण है। यह सड़क जनता के लिए जीवनरेखा है, लेकिन नेताओं के लिए “शोकेस” बन चुकी है। कभी विधायक अरविन्द पांडेय इसका शिलान्यास करते हैं, फिर सांसद अजय भट्ट फीता काटते हैं, और अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वर्चुअल माध्यम से तीसरी बार उद्घाटन कर दिया।
जनता पूछ रही है: “क्या सड़क बन रही है या शिलान्यासों की गिनती?” अगर नारियल फोड़ने और फीता काटने से सड़क बन जाती, तो अब तक यह हाइवे बनकर चमक उठती। लेकिन हक़ीक़त यह है कि सड़क की हालत जस की तस है और जनता धूल-गड्ढों में सफर करने को मजबूर है।
भाजपा हमेशा “अनुशासन” और “जनसेवा” का दावा करती है। लेकिन इस बार विधायक अरविन्द पांडेय का मंच से गायब रहना बताता है कि अनुशासन की डोर पार्टी में कितनी ढीली हो चुकी है। सांसद अजय भट्ट के कार्यक्रम में स्थानीय विधायक की गैरमौजूदगी केवल सियासी खींचतान का सबूत नहीं, बल्कि जनता के भरोसे पर चोट भी है।
यह पूरा प्रकरण बताता है कि नेताओं की प्राथमिकता जनता का विकास नहीं, बल्कि श्रेय लेने की दौड़ है। सड़क किसने बनवाई, इसका श्रेय किसे मिलेगा — यही असली राजनीति है। जनता चाहती है काम, लेकिन नेताओं को चाहिए अख़बारों की सुर्खियाँ और सोशल मीडिया की पोस्टें।
गदरपुर की जनता अब ठगी हुई महसूस कर रही है। व्यापारियों का कहना है कि “अगर शिलान्यास से सड़क बनती, तो अब तक चार लेन बन चुकी होती।” ग्रामीणों ने तंज कसा — “गड्ढे अब शिलान्यास से ही भर दो, शायद सवारी आसान हो जाए।”
राजनीति के इस तमाशे से एक बात साफ है: जनता अब नारियल और फीते नहीं, बल्कि ठोस काम चाहती है। और अगर नेताओं ने यह सच्चाई नहीं समझी, तो अगला शिलान्यास जनता उनके राजनीतिक करियर का करेगी।