शिक्षक दिवस या नेताओं का जलसा? गदरपुर में राधाकृष्णन को भूल गए आयोजक

गदरपुर। शिक्षक दिवस के नाम पर आयोजित शिक्षक सम्मान समारोह ने गदरपुर में कई सवाल खड़े कर दिए हैं। यह कार्यक्रम मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में रखा गया

शिक्षक दिवस या नेताओं का जलसा? गदरपुर में राधाकृष्णन को भूल गए आयोजक

गदरपुर। शिक्षक दिवस के नाम पर आयोजित शिक्षक सम्मान समारोह ने गदरपुर में कई सवाल खड़े कर दिए हैं। यह कार्यक्रम मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में रखा गया और इसे शिक्षक दिवस का रूप देकर प्रस्तुत किया गया।

समारोह में गदरपुर और आसपास के गाँवों व छोटे नगरों से सरकारी और प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों को बुलाया गया। मंच पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष गुंजन सुखीजा, ब्लॉक प्रमुख ज्योति ग्रोवर, पालिका अध्यक्ष मनोज गुम्बर समेत कई नेता मौजूद रहे। आयोजन की जिम्मेदारी परमजीत सिंह पम्मा और अश्वनी कुमार के कंधों पर रही। शिक्षकों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया, लेकिन पूरा कार्यक्रम नेताओं की मौजूदगी और उनके भाषणों से भरा रहा।

कटाक्ष यह है कि शिक्षक दिवस मनाने का असली कारण—भारत के द्वितीय राष्ट्रपति और महान दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन—पूरे आयोजन से नदारद रहे। न मंच पर उनका चित्र, न फ्लैक्स पर, न ही स्मृति चिन्ह पर कोई निशानी। स्थानीय बुद्धिजीवियों और शिक्षकों का कहना है कि यह भूल नहीं, बल्कि शिक्षकों की भावना को हाशिये पर डालने की प्रवृत्ति का संकेत है।

लोगों ने तीखे सवाल उठाए—

“जब कार्यक्रम शिक्षक दिवस के नाम पर था तो राधाकृष्णन जी का जिक्र क्यों नहीं?”
“क्या यह समारोह वास्तव में शिक्षकों का था या फिर नेताओं का प्रचार मंच?”
“शिक्षक दिवस पर डॉ. राधाकृष्णन को भूलना वैसा ही है जैसे दीपावली पर दीपक बुझा देना।”
समारोह में सम्मानित हुए शिक्षकों ने भी स्वीकारा कि मंच से उनका नाम जरूर लिया गया, लेकिन डॉ. राधाकृष्णन का नाम न आना बेहद खल गया। कई शिक्षकों ने कहा कि शिक्षक दिवस का असली अर्थ तभी पूरा होता है जब विद्यार्थियों को यह बताया जाए कि इस दिन की नींव किसने रखी और क्यों रखी।

अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या ऐसे आयोजनों का मकसद शिक्षकों को सचमुच सम्मानित करना है या फिर नेताओं की राजनीतिक उपस्थिति को भुनाना? मंच पर नेताओं की भीड़, बैनरों पर नेताओं के फोटो और भाषणों में आत्मप्रशंसा—इन सबसे कहीं न कहीं यह आभास हुआ कि समारोह का केंद्र शिक्षक नहीं, बल्कि नेता थे।

आख़िरकार, यह सम्मान समारोह एक आईना बनकर रह गया—जहाँ शिक्षक दिवस मनाने का दावा तो किया गया, मगर डॉ. राधाकृष्णन की अनुपस्थिति ने पूरे आयोजन की आत्मा को अधूरा कर दिया।