ईद पर तो रहम करो
*ईद की बधाई — मगर रहम भी हो भाई* ईद की बधाई, ईद की बधाई, मासूमों को मत मारो, मेरे भाई। क़ुरान नहीं कहती किसी को मारो, वो तो कहे ज़रूरतमंदों को तारो। कुर्बानी का रिश्ता है तौबा से, सीधा कहूँ — ख़ुदा की ही जुबां से। अल्लाह को न माँस, न खून प्यारा, वो तो चाहता हर जीव का सहारा। ईद कहती — छोड़ो खुदगर्ज़ी, यही तो खुदा की है मर्ज़ी। अल्लाह नहीं चाहता है, बेजुबानों की क्रूरता, वो चाहता है, सबके दिल में निर्मलता। हमें रिवायत पर नहीं, सच पर है चलना, कल्पना की कहानियों में नहीं है फँसना। परम्परा तो गुलामी भी थी कभी, उसे भी छोड़ आगे बढ़े सभी। हमें परम्परा नहीं, परम है प्यारा, यही उपदेश देता है, धर्म हमारा। खुदा के लिए दोषों की हो कुर्बानी, यही ईद की है असल कहानी। खुदा नहीं माँगता है जानवर की जान वो तो माँगता है, सच्चा ईमान। कई खोखली कुप्रथा हमने है भुलाई, सच्ची तो है केवल ख़ुदाई। कमज़ोर को मारना — गुनाह है भारी, ख़ुदा के वास्ते समझो ये बात हमारी। हमारी ख़ुशी कितनी क्रूर है, उसमें हिंसा भी भरपूर है। क्रूर है ईद, क्रिसमस या होली, धर्म के नाम पे क्यों है आँखमिचौली? ख़ुदाई है, खुद ख़तरा झेल औरों को बचाना, ख़ुदा नहीं सिखाता खून बहाना। मासूमों का गला काट, मैं कैसे दूँ सबमें बाँट? मज़लूम की मदद ही है असली ज़कात, क़ुरान भी कहती है यही बात। ईद की बधाई, ईद की बधाई मासूम को मत मारो मेरे भाई ~ अनुगामी अशोक