दिल्ली में पुरानी गाड़ियों पर रोक का निर्णय अविवेकपूर्ण व औचित्यहीन

दिल्ली और एनसीआर में 10 साल पुरानी डीजल और 15 साल पुरानी पेट्रोल गाड़ियों पर रोक लागू हो चुकी है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के 2015 के आदेश और सुप्रीम कोर्ट के 2018 के समर्थन के तहत यह नीति आज से सख्ती से लागू कर दी गई है। इस फैसले का उद्देश्य वायु प्रदूषण पर लगाम लगाना है, लेकिन इसका सबसे बड़ा असर आम जनता, खासकर मध्यमवर्गीय परिवारों, टैक्सी चालकों और छोटे व्यवसायियों पर पड़ा है।इस नियम के लागू होते ही हजारों वाहन मालिकों के सामने रोज़गार, आवागमन और आर्थिक अस्थिरता का संकट खड़ा हो गया है। सवाल यह है कि क्या पर्यावरण की कीमत पर लोगों की जीविका छीनी जा सकती है? क्या यह फैसला यथार्थवादी और व्यावहारिक है? इस नियम के अनुसार:10 साल से अधिक पुरानी डीजल और 15 साल से अधिक पुरानी पेट्रोल गाड़ियां अब दिल्ली-एनसीआर की सड़कों पर नहीं चल सकतीं। इन्हें End-of-Life Vehicle (EoL) माना गया है। इन गाड़ियों में पेट्रोल/डीजल भरवाना भी प्रतिबंधित कर दिया गया है। यदि कोई वाहन सड़क पर चलता पाया गया, तो: चार पहिया वाहनों पर ₹10,000 का जुर्माना दोपहिया वाहनों पर ₹5,000 का चालान साथ ही वाहन जब्त भी किया जा सकता है। सरकार का तर्क है कि यह फैसला दिल्ली की अत्यधिक खराब वायु गुणवत्ता को नियंत्रित करने के लिए ज़रूरी है, लेकिन जनता के लिए यह फैसला एकतरफा और असहनीय साबित हो रहा है। आम जनता पर सीधा असर 1. नई गाड़ी खरीदना मजबूरी बन गया दिल्ली में लगभग 37 लाख गाड़ियां ऐसी थीं जो इस नीति की चपेट में आ चुकी हैं। इनमें बड़ी संख्या मध्यमवर्गीय परिवारों और टैक्सी चालकों की है। नई गाड़ी खरीदना केवल महंगा नहीं, बल्कि जटिल भी है। बैंक लोन, बीमा, पंजीकरण शुल्क और रोड टैक्स मिलाकर कुल लागत ₹7 से ₹12 लाख तक जाती है। 2. रोज़गार पर संकट: टैक्सी, वैन, डिलीवरी हजारों टैक्सी चालक, ओला-उबर ड्राइवर, स्कूल वैन मालिक और डिलीवरी कर्मी इस फैसले के बाद बेरोजगार हो गए हैं। सरकार की ओर से न तो वैकल्पिक रोजगार योजनाएं दी गई हैं, न ही गाड़ी अपग्रेड के लिए कोई वित्तीय सहायता। “यह फैसला उन लाखों लोगों की आजीविका छीन रहा है जिनकी रोज़ी-रोटी पुरानी लेकिन फिट गाड़ियों पर टिकी थी। मध्यमवर्ग के पास न नई गाड़ी खरीदने की क्षमता है, न बैंक से कर्ज चुकाने की गारंटी। क्या ऐसे फैसले लोकतंत्र में उचित हैं?" स्क्रैपिंग प्रक्रिया: बोझिल और जटिल पुरानी गाड़ी बेचने का विकल्प भी आसान नहीं है: पहले RTO से स्क्रैपिंग प्रमाणपत्र लेना जरूरी है। गाड़ी केवल सरकारी स्क्रैपर केंद्र में ही दी जा सकती है। प्रक्रिया के लिए कई दस्तावेज़ (RC, पैन, आधार, फिटनेस रिपोर्ट आदि) चाहिए। गाड़ी का चेसिस नंबर हटाना अनिवार्य है। स्क्रैपिंग की वीडियो रिकॉर्डिंग और डिजिटल रिपोर्ट भी जमा करनी होती है। 1. फिटनेस आधारित मूल्यांकन लागू हो सामाजिक कार्यकर्ता और विशेषज्ञों की मांग है कि सिर्फ उम्र के आधार पर गाड़ियों को बंद करना न्यायसंगत नहीं। यदि कोई गाड़ी फिटनेस टेस्ट और प्रदूषण मानकों पर खरी उतरती है, तो उसे चलने की अनुमति मिलनी चाहिए। 2. इलेक्ट्रिक कन्वर्जन किट को बढ़ावा दिया जाए पुरानी गाड़ियों को इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) में बदला जा सकता है, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई ठोस योजना नहीं है। अगर सरकार रेट्रोफिटिंग किट पर सब्सिडी दे और प्रक्रिया को सरल करे, तो लाखों वाहन फिर से पर्यावरण के अनुकूल बनकर सड़क पर लौट सकते हैं। 3. स्क्रैपिंग इंसेंटिव और आर्थिक सहायता कई देशों में स्क्रैपिंग के बदले नई गाड़ी पर कैशबैक या टैक्स छूट दी जाती है। भारत सरकार भी यदि वाहन मालिकों को आर्थिक प्रोत्साहन दे तो यह बदलाव जनता के लिए बोझ नहीं, सहयोग बन सकता है। जनता की अपील: कानून हो व्यावहारिक नीति को एक झटके में लागू करने के बजाय चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाए। ग्रामीण और निम्न आय वर्ग के लिए विशेष राहत योजनाएं शुरू की जाएं। गाड़ियों की फिटनेस के आधार पर विशेष अनुमति प्रमाणपत्र दिए जाएं। "यह देश मध्यमवर्गीय और निम्नवर्गीय नागरिकों का है, जहां अब भी अशिक्षा और सूचना की कमी है। कानून तब ही प्रभावी होता है जब वह व्यवहारिक हो और समाज के साथ संवाद कर सके। वर्तमान नीति जनविरोधी है और इसकी पुनर्समीक्षा ज़रूरी है।" दिल्ली से बाहर की गाड़ियां भी चपेट में यह फैसला सिर्फ दिल्ली के रजिस्टर्ड वाहनों तक सीमित नहीं रहा। NCR क्षेत्र में अब दूसरे राज्यों से आने वाली पुरानी गाड़ियां भी रोकी जा रही हैं। यह स्थिति ऐसे वाहन मालिकों के लिए और भी अन्यायपूर्ण है, जिनके वाहन तकनीकी रूप से फिट हैं लेकिन अब उन्हें दिल्ली में चलाने नहीं दिया जा रहा। "मेरे पास तीन वाहन हैं जो महंगे और फिटनेस पास हैं। उनमें से एक का अधिकृत सर्विस सेंटर दिल्ली में ही है, लेकिन अब वह भी यहां नहीं आ सकती। क्या यही लोकतंत्र है? क्या टैक्स वसूलते वक्त सरकार ने कहा था कि गाड़ी रख सकते हो पर चला नहीं सकते?" पर्यावरण बनाम आजीविका: संतुलन ज़रूरी दिल्ली की वायु गुणवत्ता गंभीर चिंता का विषय है। लेकिन इसका समाधान केवल गाड़ी जब्ती और चालान में नहीं है। सरकार को पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ जनता की वास्तविक ज़रूरतों और उनकी आर्थिक हकीकत को समझना होगा। दिल्ली में पुरानी गाड़ियों पर प्रतिबंध एक साहसी कदम है, लेकिन यदि इसे सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से संवेदनशील नहीं बनाया गया तो यह आम जनता के लिए कमर तोड़ संकट बन सकता है। अब समय है कि सरकार इस नीति की समीक्षा करे, नियमों को सरल बनाए, जन भागीदारी और संवाद को प्राथमिकता दे और ऐसा मॉडल बनाए जो पर्यावरण और आजीविका दोनों को संतुलित कर सके।।वैद्य बालेन्दु प्रकाश, रूद्रपुर वर्ष १९९९ में भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री से अलंकृत प्रख्यात आयुर्वेदिक वैज्ञानिक एवं चिकित्सक के साथ सामाजिक न्याय के प्रति समर्पित वैध चन्द्र प्रकाश रिसर्च फाउंडेशन, बिलासपुर

दिल्ली में पुरानी गाड़ियों पर रोक का निर्णय अविवेकपूर्ण व औचित्यहीन
दिल्ली में पुरानी गाड़ियों पर रोक का निर्णय अविवेकपूर्ण व औचित्यहीन