गदरपुर की सियासत—सुबह की वॉक से रात की दावत तक, हर घड़ी चलता है सत्ता का खेल

गदरपुर की राजनीति इन दिनों किसी नॉन-स्टॉप ड्रामा सीरीज़ से कम नहीं। यहां सियासी चर्चा का कोई फिक्स टाइमटेबल नहीं होता—सुबह मॉर्निंग वॉक से शुरू होकर रात के भोजन तक यह बहस

गदरपुर की सियासत—सुबह की वॉक से रात की दावत तक, हर घड़ी चलता है सत्ता का खेल

प्रदीप फुटेला 

गदरपुर की राजनीति इन दिनों किसी नॉन-स्टॉप ड्रामा सीरीज़ से कम नहीं। यहां सियासी चर्चा का कोई फिक्स टाइमटेबल नहीं होता—सुबह मॉर्निंग वॉक से शुरू होकर रात के भोजन तक यह बहस यूँ चलती है मानो पूरा कस्बा किसी चुनावी रियलिटी शो का हिस्सा हो। सड़कों में टहलते लोग भी कदमों से ज्यादा मुद्दों की गिनती करते मिलते हैं, और रात होते-होते वही चर्चा किसी के घर के डाइनिंग टेबल तक पहुंच जाती है, जहां विचारों से ज़्यादा गरमा-गरमी परोसी जाती है।

इसी बीच, गदरपुर की राजनीति में भाजपा के एक नए नेताजी की एंट्री ने माहौल और दिलचस्प बना दिया है। जनाब अभी से खुद को “भविष्य के विधायक” मानकर चल रहे हैं। समर्थक उन्हें घेरे रहते हैं, फोटोशूट होते हैं, हल्की-सी भीड़ जुट जाए तो उसे “लहर” बता दिया जाता है। नेता जी की चाल भी अब वैसी हो गई है जैसी टिकट फाइनल होने के बाद नेताओं की होती है—धीमी, गंभीर और हाथ जोड़कर मुस्कराती हुई। सोशल मीडिया पर कमेंट देखकर उत्साहित हो जाते हैं।

लेकिन असली खेल यहां खत्म नहीं होता। गदरपुर की राजनीति में काँटे बिछाने वाले भी कम नहीं। यहां किसी के आगे बढ़ते ही पीछे से इतनी बातें फैलाई जाती हैं कि अच्छा-खासा नेता भी कंफ्यूज़ हो जाता है, नए नेताजी को यह समझना होगा कि गदरपुर में हवा जितनी जल्दी चलती है, उतनी ही जल्दी बदल भी जाती है। राजनीति का गणित यहां सीधा नहीं—यहां जोड़-घटाना नहीं, गुणा-भाग और कभी-कभी भाग-दौड़ भी करनी पड़ती है।

वैसे इस नई एंट्री ने  पुराने  विधायक जी के चेहरों की धड़कनें तो बढ़ा दी हैं। कुछ लोग उनके उभार को भाजपा में “नई ऊर्जा” मान रहे हैं, जबकि कुछ इसे पुराने समीकरण बिगाड़ने वाला तूफान। अंदरखाने बैठकों की संख्या बढ़ गई है। कुछ नेता रणनीति बनाने में जुट गए हैं तो कुछ विश्लेषण कर रहे हैं कि नया चेहरा किसका वोट काटेगा और किसकी उम्मीदें बढ़ाएगा। सोशल मीडिया पर भी हलचल साफ दिख रही है—पोस्ट, वीडियो, और कमेंट सेक्शन में चलती  जंग, जिसमें किसी को भी बख्शा नहीं जाता।

दूसरी ओर, जनता इस पूरे खेल को उतने ही मजे से देख रही है जैसे किसी लाइव मैच का अपडेट। चाय की दुकानों पर सुबह-सुबह चर्चा शुरू होती है—कौन आएगा, कौन जाएगा, किसके टिकट की हवा चल रही है। और रात को किसी की दावत पर वही लोग यह विश्लेषण करते हैं कि किस नेता की बात में दम है और किसका ग्राफ गिर रहा है।

गदरपुर की राजनीति की खासियत ही यही है—यहां कोई खबर एक दिन भी ताज़ा नहीं रहती। सुबह जो “भविष्य का विधायक” लगता है, शाम तक उसके खिलाफ नई कहानी तैयार हो जाती है। नए नेताजी के लिए यही असली परीक्षा है—जोश में खुद को विधायक मान लेना आसान है, पर यहां सत्ता तक पहुंचने का रास्ता मॉर्निंग वॉक जितना सीधा भी नहीं और रात की दावत जितना आसान भी नहीं।

गदरपुर की राजनीति का खेल अभी और दिलचस्प होगा। खिलाड़ी बढ़ रहे हैं, मैदान वही है—और जनता? वह हमेशा की तरह इस ड्रामे की सबसे समझदार दर्शक बनी हुई है।