बिसराई गईं बहनें और भुलाई गईं बेटियां

बिसराई गईं बहनें और भुलाई गई बेटियाँ नहीं बिसार पातीं मायके की देहरी। हालांकि जानती हैं इस गोधन में नहीं गाए जाएँगे उनके नाम से भैया के गीत फिर भी अपने आँगन में कूटती हैं गोधन, गाती हैं गीत अशीषती हैं बाप-भाई, जिला-जवार को और देती हैं लंबी उम्र की दुआएँ बिसराई गईं बहनें और भुलाई गई बेटियाँ हर साल लगन के मौसम में जोहती हैं न्योते का संदेश जो वर्षों से नहीं आए उनके दरवाज़े फिर भी मायके की किसी पुरानी सखी से चुपचाप बतिया कर जान लेती हैं किस भाई-भतीजे का होना है तिलक-छेंका किस बहन-भतीजी की होनी है सगाई, गाँव-मोहल्ले की कौन-सी नई बहू सबसे सुंदर है और कौन सी बिटिया किस गाँव ब्याही गई है? बिसराई गईं बहनें और भुलाई गई बेटियाँ कभी-कभी भरे बाजार में ठिठकती हैं, देखती हैं बार-बार मुड़कर मुस्कुराना चाहती हैं पर एक उदास खामोशी लिए चुपचाप घर की ओर चल देती हैं, जब दूर का कोई भाई-भतीजा मिलकर भी फेर लेता है आंखें, बिसराई गई बहनें और भुलाई गई बेटियाँ अपने बच्चों को खूब सुनाना चाहती हैं नाना-नानी, मामा-मौसी के किस्से पर फिर संभल कर बदल देती हैं बात और सुनाने लगतीं हैं परियों और दैत्यों की कहानियाँ ।

बिसराई गईं बहनें और भुलाई गईं बेटियां
बिसराई गईं बहनें और भुलाई गईं बेटियां