क्लाइमेट चेंज

क्लाइमेट चेंज गर्मी की छुट्टी तो आई... लेकिन साथ लाई पचास डिग्री की तबाही! पेड़ की छांव? गाँव, तालाब, नदी... सब गायब! क्यों? क्योंकि हमने जंगल काट डाले... नदियाँ सुखा दीं... पहाड़ चबा डाले! अब भुगतो — क्लाइमेट चेंज की सज़ा। पंखा थक गया... एसी ने भी हार मान ली। सूरज कहता है — अब तो सुधर जा इंसानी! धरती पुकारती है — थोड़ा सोच के जी लो... वरना तिल-तिलकर पिघलोगे! आठ सौ करोड़ की भीड़, प्लास्टिक के पहाड़... किसके लिए? मैं तो पाँच बार मिट चुकी... पर तू अब भी नहीं सुधरा भाई? अब भी समय है... भोग और हवस को छोड़, प्रकृति से प्रेम कर ले भाई। अनुगामी अशोक कार्यकर्ता, प्रशांत अद्वैत फाउंडेशन भोपाल

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