सजना है सजना के लिए

करवाचौथ का नाम लेते ही हर सुहागन के चेहरे पर एक अलग ही चमक आ जाती है। यह पर्व सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि प्रेम, आस्था और समर्पण का प्रतीक है। साल में एक बार आने वाला

सजना है सजना के लिए

करवाचौथ का नाम लेते ही हर सुहागन के चेहरे पर एक अलग ही चमक आ जाती है। यह पर्व सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि प्रेम, आस्था और समर्पण का प्रतीक है। साल में एक बार आने वाला यह दिन उस पवित्र बंधन का उत्सव है, जिसमें एक पत्नी अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए पूरे दिन निर्जला उपवास रखती है।

सुबह सूर्योदय से पहले ‘सरगी’ से दिन की शुरुआत होती है, जो सास द्वारा बहू को प्रेमपूर्वक दी जाती है। इसके बाद पूरे दिन महिलाएँ सोलह श्रृंगार कर सजती-संवरती हैं — माथे पर बिंदी, हाथों में मेंहदी, कलाईयों में चूड़ियाँ, मांग में सिंदूर, और लाल साड़ी में सजी स्त्री मानो देवी-रूप लगती है। शाम ढलते ही महिलाएँ पूजा की तैयारी करती हैं। करवा (मिट्टी का घड़ा) सजाया जाता है, जिसमें जल भरकर चंद्रमा को अर्घ्य देने की परंपरा है।

रात्रि में जब चाँद आसमान में झलकता है, तब हर सुहागन छलनी से उसे देखती है और फिर अपने पति के चेहरे को निहारती है — यही वह पल होता है जब सारा व्रत पूर्ण होता है और प्रेम का बंधन और भी गहरा। पति अपनी पत्नी को जल पिलाकर व्रत तोड़वाता है, और यह दृश्य सिर्फ एक रस्म नहीं बल्कि आत्मिक जुड़ाव का प्रतीक बन जाता है।

करवाचौथ आज भी भारतीय संस्कृति की जड़ों से जुड़ा एक ऐसा त्योहार है जो रिश्तों में विश्वास और समर्पण की गहराई को दिखाता है। बदलते समय में भी यह पर्व आधुनिकता के बीच पारंपरिकता का सुंदर संगम बना हुआ है — जहाँ सजना के लिए सजना, हर स्त्री के प्रेम और शक्ति का उत्सव बन जाता है।